बिलासपुर,: 65 साल के श्री बाबू लाल को जब अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर में लाया गया तब उनकी स्थिति बहुत ही गंभीर हो चुकी थी। सीने में दर्द, सांस फूलना, खांसी के साथ-साथ वे कोई भी हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधि भी करने में असमर्थ थे। उनके हृदय का आकार सामान्य से बड़ा हो चूका था। वे मधुमेह, उच्च रक्तचाप से पीड़ित थे और ट्यूबरक्लोसिस भी पहले हो चूका था। जांच से गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस का पता चला। इस स्थिति में हृदय के निचले बाएं कक्ष और शरीर की मुख्य धमनी, जिसे महाधमनी कहा जाता है, के बीच महाधमनी वाल्व संकुचित हो जाता है और पूरी तरह से नहीं खुलता। इससे हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त के प्रवाह में बाधाएं आती हैं या रक्त का प्रवाह ब्लॉक हो जाता है।
अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर के डीएम, कार्डियोलॉजी डॉ. अभिषेक कौशले ने कहा, “बीमारी का निदान गंभीर था और तत्काल उपचार की आवश्यकता थी। मरीज़ की उम्र, सह-रुग्णताओं और जटिलताओं को देखते हुए, ओपन हार्ट सर्जरी संभव नहीं थी। टीएवीआई या ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन, एक मिनिमली इन्वेसिव प्रक्रिया है जिसका उपयोग क्षतिग्रस्त एओर्टिक वाल्व को बदलने के लिए किया जाता है, इस प्रक्रिया को करने का निर्णय लिया गया।”
अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर के सीईओ डॉ. अर्नब एस राहा ने कहा, “श्री लाल की तबियत तेज़ी से ठीक होना टीएवीआई के परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाता है। मरीज़ों के लिए, उनके अपने ही शहर में टीएवीआई उपलब्ध कराकर, अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर ने उपचार के लिए महानगरों तक जाने की आवश्यकता को कम किया है, इससे उपचार का कुल खर्च कम हुआ है, और लोगों को जीवन रक्षक उपचार कम से कम समय में उपलब्ध होना सुनिश्चित हुआ है। जटिल हृदय स्थितियों वाले मरीज़ों में, जब ओपन हार्ट सर्जरी नहीं की जा सकती, तब टीएवीआई हमें जोखिमों से बचने और साथ ही मरीज़ों को सामान्य जीवन जीने का दूसरा मौका देने में मदद करता है। हम मरीज़-केंद्रित देखभाल के लिए समर्पित हैं और हमारी इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी टीम सर्वोत्तम संभव परिणाम सुनिश्चित करने के लिए काम करती है।”
समस्याएं यहीं खत्म नहीं हुई। बायाँ वेंट्रिकल (मुख्य पंपिंग चेम्बर) कमज़ोर था, जिससे हर धड़कन के साथ केवल लगभग 30-35% रक्त ही शरीर में प्रवाहित हो पा रहा था। ह्रदय के चेम्बर की मांसपेशीय दीवार सामान्य से कहीं अधिक मोटी थी। मरीज़ को हल्का दिल का दौरा पड़ा था जिससे हृदय की मांसपेशी क्षतिग्रस्त हो गई थी। कोरोनरी एंजियोग्राम से पता चला कि दाहिनी कोरोनरी धमनी में 90% रुकावट है।
ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन (टीएवीआई) एक मिनिमली इन्वेसिव तकनीक है, जिसका उपयोग बिना ओपन-चेस्ट सर्जरी के, संकुचित एओर्टिक वाल्व को बदलने के लिए किया जाता है। एक कैथेटर के ज़रिए, आमतौर पर पैर की ऊरु धमनी के माध्यम से, बलून-एक्सपैंडेबल या सेल्फ-एक्सपैंडेबल फ्रेम पर एक कोलॅप्सिबल प्रोस्थेटिक वाल्व लगाया जाता है। इसे बीमारी ग्रस्त वाल्व के भीतर लगाया जाता है और सामान्य रक्त प्रवाह बहाल करने के लिए बलून या स्वयं फैलने वाले तंत्र का उपयोग करके फैलाया जाता है। जिन मरीज़ों में गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के लक्षण होते हैं और उनकी दूसरे मेडिकल कारणों से ओपन हार्ट सर्जरी नहीं करवा सकते, या जो वृद्ध, गंभीर रूप से कमज़ोर या सह-रुग्णता वाले हैं, उनके लिए टीएवीआई की सलाह दी जाती है।
मरीज़ और उनके परिवार को पूरी जानकारी दी गयी, काउंसेलिंग के बाद वे इस प्रक्रिया के लिए सहमत हो गए। प्री-टीएवीआई जांच के एक भाग के रूप में, 90% ब्लॉक्ड दाहिनी कोरोनरी धमनी को एक बलून से खोला गया और उसे खुला रखने और हृदय की मांसपेशियों में रक्त प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए 3.0 × 12 मिमी का ड्रग-कोटेड स्टेंट लगाया गया। एओर्टिक वाल्व गंभीर रूप से संकुचित और कठोर हो गया था, जिसमें सामान्य तीन की बजाय केवल दो लीफलेट थे। मरीज़ को फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप भी था, जिससे फेफड़ों में रक्तचाप सामान्य से अधिक था। अच्छी बात यह थी कि हृदय के आसपास कोई तरल पदार्थ जमा नहीं था।