बारूद फैक्ट्री के नाम पर आदिवासियों की जिंदगी भट्टी में झोंकने की तैयारी

घरघोड़ा- छर्राटांगर और डोकरबुड़ा में ब्लैक डायमंड एक्सप्लोसिव्स कंपनी की स्थापना को लेकर विरोध लगातार तेज हो रहा है। बिना ग्रामसभा की अनुमति और ग्रामीणों की सहमति के जंगल की भूमि का डायवर्सन किए जाने से आदिवासी समुदाय में भारी आक्रोश है। इस मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता उस्मान बेग ने कड़ा रुख अपनाते हुए ऐलान किया है कि भूमिपुत्रों को बारूद के ढेर पर जीने के लिए मजबूर नहीं होने दिया जाएगा और इस अन्याय के खिलाफ व्यापक उग्र आंदोलन किया जाएगा।

“राजनीतिक संरक्षण में आदिवासियों को उजाड़ने की साजिश”

उस्मान बेग ने कहा कि छत्तीसगढ़ के मूलवासियों की जल, जंगल और जमीन पर जो हमला किया जा रहा है, वह पूरी तरह अस्वीकार्य है। ग्रामसभा की अनुमति और ग्रामीणों की सहमति के बिना जंगल की जमीन का डायवर्सन कर देना कानून के खिलाफ है। उन्होंने प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि एसडीएम, राजस्व अधिकारी और पटवारी उद्योगपतियों के दबाव में काम कर रहे हैं, जबकि आम जनता की आपत्तियों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।

उस्मान बेग ने आरोप लगाया कि प्रशासन और राजनेताओं की मिलीभगत से आदिवासियों को उनकी ही भूमि से बेदखल करने की साजिश हो रही है। उन्होंने कहा, “यह कैसा शासन है, जहां आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन पर जबरदस्ती बारूद की फैक्ट्री लगाई जा रही है और स्थानीय सांसद चुप्पी साधे हुए हैं?”

ग्रामीणों का बढ़ता आक्रोश – आंदोलन होगा उग्र

ग्रामसभा से बिना सहमति लिए जंगल की भूमि को उद्योगपतियों को सौंपने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। गांव के लोग अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। उस्मान बेग ने कहा कि अगर प्रशासन ने डायवर्सन रद्द कर कंपनी को हटाने की कार्रवाई नहीं की तो रायगढ़ में ऐतिहासिक आंदोलन होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि गांव के लोगों को बारूद के ढेर पर बैठने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, चाहे इसके लिए कितनी भी कुर्बानियां देनी पड़ें।

“सरकार और प्रशासन को चेतावनी – तुरंत रोकें जंगल की कटाई”

विरोध के अगले कदम के रूप में जल्द ही महापंचायत बुलाई जाएगी, जिसमें सभी प्रभावित गांवों के लोग एकजुट होंगे। इसके बाद राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा और जरूरत पड़ने पर राजधानी रायपुर तक रैली निकाली जाएगी।

उस्मान बेग ने सरकार और प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जंगल की कटाई और निर्माण कार्य नहीं रोका गया तो पूरे क्षेत्र में उग्र आंदोलन होगा और इसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी। उन्होंने कहा, “यह लड़ाई केवल छर्राटांगर और डोकरबुड़ा की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के मूलवासियों की है। जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हम किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।”

अब देखना होगा कि सरकार इस बढ़ते जन आक्रोश के सामने क्या कदम उठाती है या फिर ग्रामीणों को अपने हक की लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी।

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