छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 17 साल पुराने एट्रोसिटी के मामले में बड़ा फैसला दिया है। CG High Court ने अपने फैसले में कहा है कि महज शब्द नहीं, अपमान करने की नीयत का होना जरूरी है। मामले में अपमानित करने की मंशा साबित नहीं होने से यह अपराध नहीं बनता।
CG High Court की Justice Rajni Dubey की एकलपीठ ने 17 साल पुराने एट्रोसिटी के प्रकरण में बड़ा फैसला सुनाते हुए शिक्षिका अनीता सिंह ठाकुर को बरी कर दिया है। फैसले में कहा गया है कि मामले में अपमानित करने की मंशा साबित नहीं होने से यह अपराध नहीं बनता। ऐसे मामले में महज शब्द नहीं, अपमान करने की नीयत का होना जरूरी है। राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ की यह शिक्षिका विशेष अदालत से दोषसिद्ध होने के बाद अपील पर आई थी। ट्रायल कोर्ट ने 11 अप्रैल 2008 को शिक्षिका को SC-ST अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(1)(एक्स) में छह माह की सजा और 500 रुपये जुर्माने से दंडित किया था।
हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन टीकमराम की अनुसूचित जाति की स्थिति को कानूनी तरीके से साबित नहीं कर पाया और न ही यह सिद्ध हुआ कि शिक्षिका ने अपमानजनक मंशा से टिप्पणी की। ऐसे में 2008 में विशेष न्यायाधीश द्वारा दी गई सजा को रद कर दिया गया।
हाई कोर्ट ने पाया कि शिक्षिका ने कभी नहीं किया भेदभाव l
हाई कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता का जाति प्रमाण पत्र घटना के बाद और वह भी अस्थायी जारी हुआ था, जिसकी वैधता छह माह थी। कोर्ट ने कहा कि SC/ST Act के तहत आरोप सिद्ध करने सक्षम अधिकारी का वैध जाति प्रमाण पत्र जरूरी है। गवाहों ने माना कि घटना से पहले शिक्षिका अक्सर उसी चपरासी की बनाई चाय पीती थीं और कभी भेदभाव नहीं किया।
सिर्फ जातिसूचक शब्द बोलना तब तक अपराध नहीं जब तक उसमें जानबूझकर अपमानित करने की नीयत न हो। शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि घटना से पहले कोई विवाद नहीं था और शिक्षिका ने पहले कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया। सारे तथ्य सामने आने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ जाति का उल्लेख कर देना, बिना अपमानित करने की मंशा,धारा 3(1)(एक्स) का अपराध नहीं बनता है।

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