मनेंद्रगढ़ के गोंडवाना मेरिन फासिल्स पार्क को राष्ट्रीय पहचान मिलने जा रही है।

आमाखेरवा के पास हसदेव नदी और हसिया नाला के बीच करीब एक किमी का क्षेत्र समुद्री जीवों और वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ है।
छत्तीसगढ़ की धरती कभी गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करती थी।यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन एक शोध में इसकी पुष्टि हुई है। उत्तरी छत्तीसगढ़ में इसके सबूत आज भी मौजूद हैं।
यहां मिले समुद्री जीवों के अवशेष का संरक्षण करने के लिए सरकार एशिया का सबसे बड़ा समुद्री फॉसिल्स पार्क विकसित कर रही है।
गुफा के अंदर चट्टान पर समुद्री मछली और मगरमच्छ का जीवाश्म है। जानकार बताते हैं कि Chrimiri में फर्न प्रजाति के जीवाश्म हैं। जनवरी 2014 में पहली बार यह जानकारी सामने आई थी जब स्थानीय युवा गुफा के अंदर सुरंग में गए थे। जीवाश्म की जानकारी Indore के resesrch centre तक भेजी गई थी। जानकारों का कहना है कि करीब 28 करोड़ साल पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और अन्य पड़ोसी राज्य गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करते थे।
हर तरफ पानी ही पानी था। इस समुद्र के अवशेष आज भी मनेंद्रगढ़ हसदेव नदी के तट पर जीवाश्म के रूप में नजर आते हैं।
करोड़ों साल पहले समुद्र के नीचे था छत्तीसगढ़, आज भी मौजूद हैं साक्ष्य, बनेगा Asia का सबसे बड़ा Fossil Park
करोड़ों साल पहले समुद्र के नीचे था छत्तीसगढ़, आज भी मौजूद हैं साक्ष्य, बनेगा एशिया का सबसे बड़ा Fossil Park

छत्तीसगढ़ की धरती कभी गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करती थी।यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन एक शोध में इसकी पुष्टि हुई है।
North Chhattisgarh में इसके सबूत आज भी मौजूद हैं। यहां मिले समुद्री जीवों के अवशेष का संरक्षण करने के लिए सरकार Asia का सबसे बड़ा समुद्री फॉसिल्स पार्क विकसित कर रही है। Manandragarh-Chirmiri-
Bharatpur जिले के west Chirimiri पोड़ी में सिद्ध बाबा पहाड़ की गुफा में जलीय जीव के जीवाश्म के सबूत हैं।
जनवरी 2014 में पहली बार यह जानकारी सामने आई थी जब स्थानीय युवा गुफा के अंदर सुरंग में गए थे। जानकारों का कहना है कि करीब 28 करोड़ साल पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और अन्य पड़ोसी राज्य गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करते थे।
हर तरफ पानी ही पानी था। इस समुद्र के अवशेष आज भी मनेंद्रगढ़ हसदेव नदी के तट पर जीवाश्म के रूप में नजर आते है।
लखनऊ के वैज्ञानिकों ने सबसे पहले किया था दौरा

मनेंद्रगढ़ के गोंडवाना मेरिन फासिल्स पार्क को राष्ट्रीय पहचान मिलने जा रही है।आमाखेरवा के पास हसदेव नदी और हसिया नाला के बीच करीब एक किमी का क्षेत्र समुद्री जीवों और वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ है। मनेंद्रगढ़ में हसदेव नदी के तटीय क्षेत्र को जीवाश्म पार्क के रूप में विकसित करने का प्रयास किया गया है।

Lucknow के Birbal Sahani Institute के पैलियोबॉटनी विभाग के वैज्ञानिकों ने सबसे पहले इस क्षेत्र का दौरा कर यहां जीवाश्म की पुष्टि की थी।

करोड़ों साल पहले समुद्र के नीचे था छत्तीसगढ़, आज भी मौजूद हैं साक्ष्य, बनेगा एशिया का सबसे बड़ा फॉसिल्स पार्कमनेंद्रगढ़ के गोंडवाना मेरिन फासिल्स पार्क को राष्ट्रीय पहचान मिलने जा रही है।आमाखेरवा के पास हसदेव नदी और हसिया नाला के बीच करीब एक किमी का क्षेत्र समुद्री जीवों और वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ है।

Fossil Park in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ की धरती कभी गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करती थी।यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन एक शोध में इसकी पुष्टि हुई है। उत्तरी छत्तीसगढ़ में इसके सबूत आज भी मौजूद हैं। यहां मिले समुद्री जीवों के अवशेष का संरक्षण करने के लिए सरकार एशिया का सबसे बड़ा समुद्री फॉसिल्स पार्क विकसित कर रही है।
जीवाश्म की जानकारी Indore के resesrch centre तक भेजी गई थी।
हर तरफ पानी ही पानी था। इस समुद्र के अवशेष आज भी मनेंद्रगढ़ हसदेव नदी के तट पर जीवाश्म के रूप में नजर आते हैं।

लखनऊ के वैज्ञानिकों ने सबसे पहले किया था दौरा
मनेंद्रगढ़ के गोंडवाना मेरिन फासिल्स पार्क को राष्ट्रीय पहचान मिलने जा रही है. आमाखेरवा के पास हसदेव नदी और हसिया नाला के बीच करीब एक किमी का क्षेत्र समुद्री जीवों और वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ है. मनेंद्रगढ़ में हसदेव नदी के तटीय क्षेत्र को जीवाश्म पार्क के रूप में विकसित करने का प्रयास किया गया है।

एशिया का सबसे बड़ा फॉसिल्स पार्क बनेगा ।

इस क्षेत्र को जियो हैरिटेज के रूप में विकसित करने का सुझाव राज्य सरकार को दिया गया था, जिसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार इसे गोंडवाना फॉसिल्स पार्क के रूप में विकसित कर रही है।
माना जा रहा है कि यह एशिया का सबसे बड़ा फॉसिल्स पार्क के रूप में विकसित होगा। बता दें कि देश में मनेंद्रगढ़ की तरह राजहरा झारखंड, दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल, खेमगांव सिक्किम और सुबांसरी अरुणाचल प्रदेश में इतने पुराने समुद्री जीवाश्म मिल चुके हैं।

छत्तीसगढ़ में जीवाश्म की देखरेख नागपुर महाराष्ट्र मुख्यालय के अधीन की जाती है। जीएसआई के अनुसार करोड़ों साल पहले यह हिस्सा समुद्र के नीचे था। भू-गर्भ में हलचल से यह ऊपर आया। शासकीय लाहिड़ी पीजी कॉलेज चिरमिरी के व्याख्याता नूर मोहम्मद के अनुसार मनेंद्रगढ़ के आमाखेरवा क्षेत्र में हसदेव नदी के किनारे गोंडवाना समूह की चट्टानों में समुद्रीय जीवाश्म हैं। यह जीवाश्म मोनस्का-फायलम के लैमेलीब्रेंकीया वर्ग के एक्सेकेल पेक्टन और ल्यूरीडेशमा प्रजाति के हैं।

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