बेदम की सुर ताल छंद से रचित “संगीतिका” का विमोचन
जन्मदिवस पर संगीत महाविद्याल मे बही सुर सरिता
रायगढ़ /अब की बार नगर में होली के पर्व पर केवल रंग गुलाल ही नहीं उड़े बल्कि सुरों की ऐसी बयार भी बही कि पूरा माहौल रंगीन हो गया। अवसर था नगर की महान विभूति और कला के विराट व्यक्तित्व वेदमणि सिंह ठाकुर के जन्मोत्सव का।इस माह 13 मार्च को कलागुरु वेदमणि सिंह ने जीवन के 90 बसंत पूर्ण किये। सुर और संगीत के एक सम्पूर्ण सजीव संस्थान के तौर पर स्थापित वेदमणि गुरुजी के शिष्यों ने बेहद उत्साहित माहौल में उनका जन्मदिन मनाया। 10 साल से लेकर 70 साल तक आयु की बेदम के शिष्यों की श्रृंखला ने लक्ष्मण संगीत महाविद्यालय में जब अपने गुरु के जन्मदिन पर सुर सरगम की स्वर लहरियां बिखेरीं तो इस सुरीली सरिता में गोते लगाने नगर के तमाम गणमान्य जन भी विद्यालय में जमा हो गये।चूंकि अवसर रंगों के महापर्व होली का भी था,सो सरस्वती वंदना से शुरु हुआ सुर संगम,गुरु महिमा के बाद होली के रंगों में रंग गया।एक एक कर “बेदम” के कई शिष्यों ने होली के मनभावन गीतों की झड़ी लगाकर पूरा माहौल रंगीन कर दिया।देर रात तक लक्ष्मण संगीत महा विद्यालय में कलागुरू वेदमणि के अविश्वसनीय और स्वर्णिम यादों से भरे 90 वें जन्मदिन को अविस्मरणीय बनाने का लयबद्ध सुरीला सफर निर्बाध जारी रहा।इस मौके पर नगर के विद्वान सेवानिवृत्त प्राध्यापक एवं भागवत मनीषी प्रोफे.क्रांतिकुमार तिवारी के विशिष्ट मार्गदर्शन मे कला गुरू वेदमणि सिंह की बेहद प्रिय और सुर ताल छंद जैसी तमाम परंपरागत गीत की विधाओं से लबरेज़ रचना “संगीतिका” का भी विमोचन किया गया।इस अवसर पर अपने सारगर्भित संबोधन मे प्रोफे. के के तिवारी ने संस्कृत की चंद लाइनों “साहित्य संगीत कला विहीन:,साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीन:”पर विस्तार से
भावार्थ समझाते हुए बताया कि कलागुरू वेदमणि सिंह ने अपने ओजस्वी पुरुषार्थ के बूते शत प्रतिशत आदर्श मनुष्य की भूमिका का निर्वहन किया है।परमेश्वर की कृपा भी ऐसे ही महामानव को प्राप्त होती है।
वहीं बड़ी संख्या मे उपस्थित होकर ईष्ट शुभचिंतकों और शिष्यों ने शाल,श्रीफल और पुष्पगुच्छ भेंटकर गुरुजी के शतायु होने की कामना की। शुभचिंतकों और शिष्यों के सम्मान से गदगद गुरुजी ने सभी को अपने आशीर्वचनों से कृतार्थ करते हुए कहा कि हमे दीर्घायु रहना है तो “जीने के लिए खाना होगा,खाने के लिए नहीं जीना होगा”यही वो मंत्र है जो हमे आसमां छूने की प्रेरणा देता है।
संगीत कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती वंदना से की गई।वैसे तो कलागुरू की संगीत ग़ज़ल आदि 15 हजार से भी अधिक रचनाएं हैं किंतु चार हज़ार से भी अधिक उन्होंने केवल सरस्वती बंदना की रचना की है जो किसी भी नजरिए से गागर मे सागर के माफिक है।कु. ईश्वरी गुप्ता ने बहुत ही मधुर स्वर मे सरस्वती वंदना गीत “दर पे तुम्हारे ओ सरस्वती मईया” गाने के बाद सुग्घर छत्तीसगढ़ी मीठे गीत “मेरे गीत अगर तुम गा लो”और होली गीत “कैसे होरी खेले जाऊं गोई,जबर खेलैया होरी के”सुनाकर श्रोताओं को मुग्ध किया। वहीं गीता दिगंबर पटेल ने,”गीत गज़लों की महफ़िल सजाएं”, ईशा यादव ने होली गीत “गोरे तन पे न डालो रंग,साजे दिल पे मोहब्बत की होली,होली खेलत है कन्हाई राधा के संग”आदि होली गीतों से सबका खूब मनोरंजन किया।साज पे संगत दे रहे थे,वायलिन पर संगीत विषारद जगदीश मेहर जी,और तबला पर आनंद दास महंत जी।कार्यक्रम को सफ़ल बनाने मे प्रोफे. क्रांतिकुमार तिवारी,जगदीश मेहर,डी एस ठाकुर,प्रो.अंबिका वर्मा,डी एल देवांगन,श्रीमती चंद्रा देवांगन,नंदलाल त्रिपाठी,बनवारी लाल देवांगन,हरेराम तिवारी,ज्ञान सिंह ठाकुर,रतन मिश्रा, शांतनु पटेल,हितेश राजपूत,ओंकार सिंह ठाकुर,व्यास सिंह ठाकुर, प्रभाकर सिंह ठाकुर,प्रवीण सिंह ठाकुर,जय कुमार यादव,यामिनी देवांगन,शैलेंद्र देवांगन,सुलोचना साव,विमला गौतम,काव्यांश साहू, सरोज सिंह ठाकुर,शशि गौतम,मीना ठाकुर,खुशबू सिंह,वंदना गौतम,रागिनी ठाकुर,आन्या ठाकुर, दामिनी ठाकुर सहित बड़ी संख्या मे महिला पुरुष वर्ग की उत्कृष्ट भूमिका रही।

