मानसिक तनाव, घुटनों, पीठ या कमर में दर्द जैसे कई रोगों से बचने के लिए बिना दवा खाए या चीरा लगवाए फिजियोथेरेपी एक असरदार तरीका है। वर्तमान में अधिकांश लोग दवाओं के झंझट से बचने के लिए फिजियोथेरेपी की ओर रुख कर रहे हैं। अस्थमा और फ्रैक्चर पीड़ितों के अतिरिक्त गर्भवतियों को भी फिजियोथेरेपी की सलाह दी जाती है। देश के हर बड़े अस्पताल में फिजियोथेरेपी की जाती है। खेल में इंजरी होना बेहद आम बात है, या दूसरे शब्दों में कहें तो इंजरी एक स्पोर्ट्समैन का गहना होती है। गलत तकनीक, अत्यधिक कार्यभार, शरीर में पोषक तत्वों की कमी और निर्जलीकरण आदि जैसे कारणों से खिलाड़ियों को इंजरी हो सकती है। इन चोटों से उबरने में खिलाडी फिजियोथेरेपी की सहायता लेते है। ऐसे में फिजियोथेरेपिस्ट पर खिलाड़ियों को फिट रखने की बड़ी जिम्मेदारी होती है। फिजियोथेरेपिस्ट ऋचा शर्मा बताती हैं कि खेल के दौरान लगने वाली चोटों के अलग-अलग स्टेज होते हैं। खिलाड़ियों की तकलीफ के लक्षणों के आधार पर उनकी जांच की जाती है जिसके बाद उनके लिए एक उपचार प्रक्रिया तैयार की जाती है।