बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग की बहुलता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के रणनीतिकारों और चुनाव प्रबंधकों को यह अच्छी तरह से पता है। इसीलिए पहले ही दिन से ही उन्होंने इस रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बिलासपुर, जो प्रदेश की न्यायधानी के रूप में मशहूर है, अरपा, शिवनाथ और खारुन नदी के किनारे स्थित है, इस क्षेत्र में बहुत सारे सुगंधित चावल के खेत हैं। 1997 से लेकर आज तक, यहाँ भाजपा को हर बार जीत मिली है। कांग्रेस ने बार-बार अपने प्रत्याशी को बदला, जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। इस सीट में अन्य पिछड़ा वर्ग की बहुलता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने इसे ध्यान में रखा है और इस पर काम किया है। ओबीसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए, भाजपा बीते 15 वर्षों से साहू समाज से प्रत्याशी उतारती रही है। कांग्रेस ने भी इस बार भाजपा को चुनौती देने का फैसला किया है। भाजपा के अभेद गढ़ को भेदना कांग्रेस के लिए मुश्किल है। इसे कहा जा सकता है कि यह कांग्रेस के लिए गर्व की सीट बन गई है। दोनों दलों की नजरें राजनीति पर हैं। खासकर ओबीसी वर्ग के मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की कोशिशें पहले ही दिन से शुरू हो गई हैं और चुनाव के नजदीक आते ही तेज हो गई हैं। तीन लाख 15 हजार साहू और दो लाख 95 हजार के करीब यादव मतदाताओं पर उनकी नजरें हैं। दोनों ही दलों ने तीन महत्वपूर्ण स्तर पर काम करना शुरू किया है। मैदानी क्षेत्र में सभा समारोह, रोड शो, नुक्कड़ सभाओं के लिए एक अलग प्रभावी टीम में केंद्र व राज्य शासन की योजनाओं की जानकारी रखने वाले वाकपटु वक्ताओं की टीम तैयार की गई है। दूसरे स्तर पर गांव-गांव में मतदाताओं के बीच संपर्क का अभियान छेड़ा गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *