18 फरवरी, 2024: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) लोकसभा चुनाव 2024 में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 5 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार (19 फरवरी) को सूबे के अकोला में यह घोषणा की।
ओवैसी ने कहा:
“हमने महाराष्ट्र में 5 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। हम औरंगाबाद, नांदेड़, उस्मानाबाद, बिद और अमरावती से चुनाव लड़ेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा:
“हम अन्य दलों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। हम अकेले चुनाव लड़ेंगे।”
AIMIM ने 2019 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 2 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 1 सीट जीती थी।
राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र:
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का आगामी लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की पांच विशिष्ट लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का निर्णय, राज्य की राजनीतिक गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण घटना माना जा रहा है। इस कदम का उद्देश्य उन क्षेत्रों में AIMIM के प्रभाव को बढ़ाना है, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है। इन निर्वाचन क्षेत्रों के चयन पर ओवैसी ने काफी सोंच-समझकर बारीकी से काम किया है:
- औरंगाबाद: एतिहासिक रूप से अहम और AIMIM के प्रभाव वाला शहर। AIMIM सांसद इम्तियाज जलील पहले से इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- नांदेड़: अधिक मुस्लिम आबादी और मराठवाड़ा क्षेत्र में एक रणनीतिक सीट।
- उस्मानाबाद: मराठवाड़ा क्षेत्र में इसे AIMIM के संभावित क्षेत्र के रूप में देखा जाता है।
- बीड़: अधिकारीत आंकड़ों के अनुसार इसमें अत्यंत अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। AIMIM की रणनीति दलित और मुस्लिम मतों के गठबंधन पर फोकस करने की है।
- अमरावती: विदर्भ क्षेत्र का एक लोकप्रिय निर्वाचन क्षेत्र।
रणनीति की बारीकियां:
ओवैसी की महाराष्ट्र में ये सोंची-समझी रणनीति का परिणाम है:
- मुस्लिम वोटों का एकीकरण: AIMIM मुस्लिम मतदाताओं का गढ़ बनाने का प्रयास कर रही है, खासकर ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में जहां मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है।
- धर्मनिरपेक्ष दलों को चुनौती: कांग्रेस और एनसीपी जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए भी चुनौती, क्योंकि एआईएमआईएम उनका वोट-बैंक छीनने का लक्ष्य रखती है।
- आक्रामक विस्तार: हैदराबाद के बाहर पार्टी के आधार को बढ़ाने का एक आक्रामक प्रयास
- क्षेत्रीय प्रभाव में वृद्धि: महाराष्ट्र जैसे प्रमुख राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर भारतीय राजनीति में प्रभाव को बढ़ाना
विपक्षी दलों पर संभावित प्रभाव:
- वोटों का विभाजन: AIMIM के उम्मीदवार मैदान में उतरने से विपक्षी दलों के बीच वोट बंटने की संभावना है, इससे संभावित रूप से सत्तारूढ़ गठबंधन को फायदा हो सकता है।
- कांग्रेस और एनसीपी के लिए आंतरिक चुनौतियां: कांग्रेस और एनसीपी जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों को वोट हासिल करने के लिए मुस्लिम वोटों की अधिक आवश्यकता होगी, खासकर जिन क्षेत्रों में AIMIM अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है।
आगे बढ़ते हुए :
महाराष्ट्र में AIMIM का फैसला राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को हिला सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी की मौजूदगी का चुनाव परिणामों पर क्या असर पड़ता है और भविष्य में ये फैसला महाराष्ट्रीय राजनीति की दिशा पर क्या असर दिखाएगा।